यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं
न यह मसला सिर्फ किसान का है
है यह गाओं के बसते रहने का
जिसे ख़ौफ़ उजड़ जाने का है
मुद्दत से उजड़ रहा यूँ तो
कोई लगा उजड़ने आज नहीं
इसे गैरों ने भी लूटा है
और ठगा गया अपनों से भी
मन जिस्म से बढ़ कर है आहत
दुःख रूह से बिछड़ जाने का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
न यह मसला सिर्फ किसान का है
यह बात सिर्फ खेतों की नहीं
यह बात तो पन्नो की भी है
अक्षर है जिन पर बीजों जैसे
उन सच्च के फलसफों की भी है
मुझे फ़िक्र लालो[1] के कोधरे का
तुझे भागो के पकवान का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
न यह मसला सिर्फ किसान का है
थी कही किसी पुरखे ने कभी
वोह बात अभी तक है ताज़ी
नहीं काम थकाता बन्दे को
बन्दे को थकाती बेकदरी
यह दुःख है उसी बेकदरी का
यह ज़ख़्म उसी अपमान का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
न यह मसला सिर्फ किसान का है
तेरे साथ अमीर वज़ीर खड़े
मेरे साथ पैगम्बर पीर खड़े
रविदास फरीद, कबीर खड़े
मेरे नानक शाह फ़क़ीर खड़े
मेरा नामदेव, मेरा धन्ना भी
मुझे मान अपनी इस शान का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
न यह मसला सिर्फ किसान का है
जिस की सरकार भी ज़रखरीद
कितने अख़बार भी ज़रखरीद
यह चैनल वैनल एंकर भी
मंडल व्यापर भी ज़रखरीद
यह मसला मायाधारियों के
जंजाल में फसे जहान का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
न यह मसला सिर्फ किसान का है
तेरे पास चार खांचे[2] भी नहीं
तू यहाँ कहाँ फिरता है रे
तेरी गुमराही सिखर की है
यूहीं पागल हुआ फिरता है रे
जी मै चेला उस गुमराह का हूँ
जिस का थाल पूरे आसमान का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
वाह पातर तू भी यहीं पे है
तेरी किस ज़मीन को खतरा है
मेरे बोलों को, मेरी कविता को,
मेरी सुरज़मीन[3]को खतरा है
मेरा हर्फ़ हर्फ़ है तेरी ज़द में
मेरा मसला उसे बचाने का है
यह बात सिर्फ इतनी ही नहीं। ….
[1] The legend goes, that once a poor peasant, Lalo, as well as a rich merchant Malik Bhago both, offer Guru Nanak a meal offering. The Guru chose to accept the humble meal of the poor peasant over the other when asked the reason, he took a roti each from the two offerings placed before him and squeezed them, out of Lolo’s coarse-millet (kodara) roti poured milk, and out of the merchant’s roti trickled blood.
[2] खांचे = हल से खींची लकीर
[3] सुरजीत पातर की एक किताब का नाम
This is a Hindi translation by Surjit Patar of his poem Ih Baat Niri Eni Hi Nahi originally written in Punjabi.
Surjit Patar is a critically acclaimed Punjabi poet. Among his well-known works are Hawa Vich Likhe Harf and Birkh Arz Kare. He retired as Professor of Punjabi at Punjab Agricultural University, Ludhiana.